भोपाल: मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के शाहजहांनी पार्क में जारी अतिथिविद्वानों का आंदोलन 55 दिन से जारी है, लेकिन कांग्रेस की कमलनाथ सरकार इस मसले पर संवेदनहीन नजर आ रही है। सरकार की तरफ से अतिथिविद्वानों की हालत तक जानने की कोशिश नही की गई। सरकार अतिथिविद्वानों को वचन देने के बाद भी उनपर कोई ध्यान नही दे रही, आंदोलनरत अतिथिविद्वान कड़ाके की ठंड में भी अपना आंदोलन जारी रखे हुये है।
अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा में संयोजक डॉ. देवराज सिंह नें कहा की, उन्हें कांग्रेस सरकार से इतनी बड़ी वादा खिलाफी की कतई उम्मीद नही थी। कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने इंदौर में कहा था कि शोषणकारी अतिथिविद्वान व्यवस्था समाप्त होनी चाहिए। किन्तु सत्ता प्राप्ति के बाद राहुल गांधी के सिपहसालार मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अतिथिविद्वान व्यवस्था नही बल्कि अतिथिविद्वानों को ही समाप्त कर दिया है। मोर्चा के संयोजक डॉ. सुरजीत भदौरिया के अनुसार लगभग 2700 अतिथिविद्वानों को अब तक कांग्रेस सरकार बेरोजगार कर चुकी है। जबकि उच्च शिक्षा मंत्री अभी भी किसी भी अतिथिविद्वान को नौकरी से बाहर न निकालने का भ्रामक प्रचार कर रहे है।
अतिथिविद्वानों का नियमितीकरण सरकार की नैतिक जिम्मेदारी: पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह।
अतिथिविद्वान नियमितिकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. मंसूर अली के अनुसार आज अतिथिविद्वानों का एक प्रतिनिधिमंडल कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह से मुलाकात कर, वचनपत्र के अनुसार अतिथिविद्वानों के नियमितीकरण की मांग को जल्द पूरा करने का अनुरोध किया। जिस पर पूर्व नेता प्रतिपक्ष द्वारा कहा गया कि अतिथिविद्वानो के नियमितिकरण का मुद्दा प्राथमिकता के आधार पर वचनपत्र मे शामिल किया गया था। जिसे पूरा करना सरकार का नैतिक दायित्व है। मैं जल्द इस संबंध में मुख्यमंत्री कमलनाथ जी से चर्चा करूँगा।
55 दिनों से लगातार जारी है अतिथिविद्वानों का आंदोलन।
अतिथिविद्वान नियमितिकरण संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी डॉ. जेपीएस चौहान एवं डॉ. आशीष पांडेय के अनुसार अतिथिविद्वानों के आंदोलन ने आज संघर्षपूर्ण 55 दिन पूर्ण कर लिए हैं। जबकि सरकार सत्ता के गलियारों में व्यस्त हैं। विपक्ष में रहते जिन कांग्रेसी नेताओं को अतिथिविद्वानों की आगे उचित और जायज़ लगती थी, सत्ता प्राप्ति के बाद आज वही माँगे अनुचित लगने लगी है। शायद यही राजनीति का गंदा चेहरा है। जो मतलब निकल जाने पर सब कुछ भूल जाते है।
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